Abstract
यज्ञ भारतीय संस्कृति का आदि प्रतीक है। हमारे धर्म में जितनी महानता यज्ञ को दी गई है, उतनी और किसी को नहीं दी गयी है। जीवन का कोई भी कर्म हो, शायद ही यज्ञ के बिना पूर्ण माना जाता हो। जन्म से पूर्व से लेकर मरण पर्यन्त सम्पन्न होने वाले संस्कार यज्ञ के माध्यम से ही सम्पन्न होते हैं। यज्ञ के चिकित्सकीय गुण एवं वातावरण शुद्धि के लाभ सर्वविदित हैं। यज्ञ से कामना सिद्धि के अनगिन उदाहरण शास्त्रों में भरे पड़े हैं। इन सबके साथ यज्ञ में जो प्रेरणा प्रवाह निहित है, साधना का समग्र विधान विद्यमान है, वह स्वयं में विलक्ष्ण है। यज्ञ में निहित जीवन दर्शन व्यक्ति, परिवार, समाज- संस्कृति, प्रकृति-पर्य़ावरण, सकल सृष्टि एवं ब्रह्माण्ड को स्वयं में समेटे हुए है। इसमें भौतिक विकास-आध्यात्मिक उन्नयन, इहलोक-परलोक, विज्ञान-अध्यात्म जीवन के दोनों विरोधी ध्रुब अपनी समग्रता में गुंथे हुए मिलते हैं, जो यज्ञ के दर्शन की विशिष्टता है। साथ ही इसमें जीवन साधना का वह पथ निर्दिष्ट है, जो व्यक्ति को जहाँ खड़ा है, वहीं से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और व्यक्तित्व के मर्म को स्पर्श करते हुए, उसके रुपाँतरण के साथ चरम लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है और व्यक्ति के उत्कर्ष के साथ समष्टि के कल्याण को सुनिश्चित करता है। वर्तमान शोध पत्र में यज्ञ से जुड़े इन्हीं पक्षों को प्रकाशित करने का प्रय़ास है, जिसमें इसके समग्र जीवन दर्शन एवं साधना पथ को स्पष्ट किया जा रहा है।
Yagya is the original symbol of Indian culture. The greatness that has been given to Yajna in our religion, has not been given to anything else. Whatever may be the work of life, it is hardly considered complete without Yagya. The rites that are performed from before birth till death are performed only through Yagya. The medicinal properties of Yagya and the benefits of purifying the environment are well known. The scriptures are filled with innumerable examples of fulfilment of desires through Yagya. Along with all this, the flow of inspiration that is contained in Yajna, the overall law of Sadhana (discipline to attain greater good) exists, it is unique in itself. The philosophy of life enshrined in the Yajna includes the individual, family, society-culture, nature-environment, the Sakal Shristi (earth and including its all components) and the universe. In this, both the opposing poles of physical development-spiritual upliftment, Ihloka- Parloka (life and life after death), and science-spiritual life are intertwined in their totality, which is the speciality of the philosophy of Yagya. Along with this, the path of life practice is specified in it, which motivates the person to move forward from where he is standing, and by touching the heart of the personality, with its transformation, leads to the ultimate goal and leads to the ultimate goal of the person and with excellence ensures the welfare of the whole. In the present research paper, an attempt has been made to publish these aspects related to Yagya, in which its overall philosophy of life and path of spiritual practice is being clarified.
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28. गायत्री महाविज्ञान, भाग-1, संयुक्त संस्करण-2009, पृ.131
29. गायत्री महाविज्ञान, भाग-1, संयुक्त संस्करण-2009, पृ.131
30. गायत्री महाविज्ञान, भाग-1, संयुक्त संस्करण-2009, पृ.132
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