Abstract
वेद वैदिक साहित्य का आधार हैं। वेद चार हैं - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद। वेदों का सुगमता एवं सरलता से अध्ययन करने के लिए वेदांगो की रचना हुई है; यह 6 वेदांग है – शिक्षा, छंद, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और कल्प। वेदविहित कर्मों, यज्ञ संबंधी कर्मकांड तथा विविध संस्कार आदि का जिस शास्त्र में क्रमबद्ध रूप से प्रतिपादन किया जाए वही कल्प कहलाता है। वेद का प्रमुख विषय यज्ञ है। इस दृष्टी से कल्प वेदांग महत्वपूर्ण हैं। यज्ञों का जो विवेचन ब्राह्मण ग्रन्थों में प्राप्त है लेकिन वे बहुत ही जटिल हैं उनको सरल, शुलभ एंव स्पष्ट करने के लिए कल्प सूत्रों की रचना अनिवार्य थी। कल्प वेदांग के यह ग्रंथ सूत्रों के रूप में है, इन कल्प सूत्रों को चार भागों में विभक्त किया गया है – 1) श्रौतसूत्र, 2) शुल्वसूत्र, 3) धर्मसूत्र, 4) गृहसूत्र।
श्रौतसूत्र ग्रंथों को ब्राह्मण ग्रंथों का सार कहा जा सकता है, क्योंकि ब्राह्मणग्रंथों में कर्मकांड अर्थात यज्ञ कर्मकांड आदि को अत्यंत विस्तृत रूप में बताया गया है और श्रौत सूत्रों में उन्हीं यज्ञ विधि-विधान का साररूप में वर्णन देखने को मिलता है। शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं जो श्रौत कर्मों (वैदिक यज्ञ) से सम्बन्धित हैं। इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से संबंधित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है। अधिकतर गृहसूत्रों में धर्मसूत्रों के ही विषय मिलते हैं। पूतगृहाग्नि, गृहयज्ञ विभाजन, प्रातः सायं की उपासना, अमावस्या पूर्णमासी की उपासना, पके भोजन का हवन, वार्षिक यज्ञ, पुंसवन, जातकर्म, विवाह, उपनयन एंव अन्य संस्कार छात्रों स्नातकों एंव छुट्टियों के नियम, श्राद्ध कर्म, इत्यादि है। धर्मसूत्र की विषय परिधि बहुत विस्तृत है, उसका मुख्य विषय आचार विधि-नियम एंव क्रिया-संस्कारों की विधिवत चर्चा करना है । गृहसूत्रों में मुख्यतः गृह संबंधी के याज्ञिक कर्मों एवं संस्कारों का वर्णन है, जिसका सम्बन्ध मुख्यतः गृह्स्थ से है। धर्मसूत्र की विषय वस्तु एंव प्रकरणों में धर्मसूत्रों का गृहसूत्रों से घनिष्ट संबंध है। धर्मसूत्रों और गृहसूत्रों मे पारिवरिक और सामाजिक जीवन के साथ साथ आंतरिक जीवन यज्ञ के सूत्र हैं। इन चारो कल्प सूत्रों मे यज्ञ के आंतरिक एवम बाह्य (कर्मकाण्ड परक) यज्ञ के सारे सूत्र उपलब्ध है जिसका व्यक्ति व समाज के उत्थान के लिये उपयोग किया जा सकता है।
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