यज्ञ: एक ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि
Download full-text PDF
View full-text HTML

Keywords

मानव
यज्ञ
तत्वदर्शन
सहकारिता
परमाणु और जीवाणु

How to Cite

सिंहर. (2018). यज्ञ: एक ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि: Yagya: A Historical and Scientific Perspective. Interdisciplinary Journal of Yagya Research, 1(2), 15 - 21. https://doi.org/10.36018/ijyr.v1i2.11

Abstract

मानव की शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शान्ति के लिए प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अनेक विधानों की व्यवस्था की थी, जिनका पालन करते हुए मानव अपनी आत्मशुद्धि, आत्मबल-वृद्धि और आरोग्य की रक्षा कर सकता है, इन्हीं विधि-विधानों में से एक है यज्ञ। वैदिक विधान से हवन, पूजन, मंत्रोच्चारण से युक्त, लोकहित के विचार से की गई पूजा को ही यज्ञ कहते हैं। यज्ञ मनुष्य तथा देवताओं के बीच सम्बन्ध स्थापित करने वाला माध्यम है। अग्नि देव की स्तुति के साथ ऋग्वेद का प्रारम्भ भारतवर्ष में यज्ञ का प्राचीनतम ऐतिहासिक-साहित्यिक साक्ष्य है। वहीं सिन्धु घाटी की सभ्यता के कालीबंगा, लोथल, बनावली एवं राखीगढ़ी के उत्खननों से प्राप्त अग्निवेदियाँ इसका पुरातात्त्विक प्रमाण है। यज्ञ तत्वदर्शन- उदारता, पवित्रता और सहकारिता की त्रिवेणी पर केन्द्रित है। यही तीन तथ्य ऐसे हैं, जो इस विश्व को सुखद, सुन्दर और समुन्नत बनाते हैं। ग्रह नक्षत्र पारस्परिक आकर्षण में बैठे हुए ही नहीं है, बल्कि एक-दूसरे का महत्वपूर्ण आदान-प्रदान भी करते रहते हैं। परमाणु और जीवाणु जगत भी इन्हीं सिद्धांतों के सहारे अपनी गतिविधियाँ सुनियोजित रीति से चला रहा है। सृष्टि संरचना, गतिशीलता और सुव्यवस्था में संतुलन इकोलॉजी का सिद्धांत ही सर्वत्र काम करता हुआ दिखाई पड़ता है। हरियाली से प्राणि पशु निर्वाह, प्राणि शरीर से खाद का उत्पादन, खाद उत्पादन से पृथ्वी को खाद और खाद से हरियाली। यह सहकारिता चक्र घूमने से ही जीवनधारियों की शरीर यात्रा चल रही है। समुद्र से बादल, बादलों से भूमि में आर्द्रता, आर्द्रता से नदियों का प्रवाह, नदियों से समुद्र की क्षतिपूर्ति - यह जल चक्र धरती और वरूण का सम्पर्क बनाता और प्राणियों के निर्वहन के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है। शरीर के अवयव एक दूसरे की सहायता करके जीवन चक्र को घूमाते हैं। यह यज्ञीय परम्परा है, जिसके कारण जड़ और चेतन वर्ग के दोनों ही पक्ष अपना सुव्यवस्थित रूप बनाए हुए हैं।

For the physical, mental and spiritual peace of human beings, the ancient sages had arranged many laws, by following which man can do his self-purification and protect his strength and health, Yagya is one of these laws.  According to the Vedic legislation, the worship done with the thought of public interest, consisting of Havan, prayer, chanting, is called Yagya. Yagya is the medium to establish relationship between humans and deities. The beginning of Rigveda with the praise of Agni Dev is the oldest historical-literary evidence of Yagya in India. On the other hand, the fire altars obtained from the excavations of Indus Valley Civilization at Kalibanga, Lothal, Banawali and Rakhigarhi are the archaeological evidence of this. Yagya’s philosophy is centered on the triveni (a point where three different things or substances mix together ) of generosity, purity and co-operation. These three facts are such that make this world pleasant, beautiful and prosperous. Planets and constellations are not only sitting in mutual attraction, but also keep exchanging important information with each other. The nuclear and bacterial world is also running its activities in a planned manner with the help of these principles. The principle of balance ecology in creation structure, dynamism and orderliness seems to be working everywhere in the form of natural cycles. Animals feed on plants, production of manure from animal body, manure production contribute to the earth soil and lastly plants grow from manure. It is only because of the turning of this co-operative cycle that the bodily journey of the living beings is going on. Ocean to cloud, cloud to humidity in land, humidity to flow of rivers, rivers to ocean replenishment – ​​this water cycle connects earth and Varuna (water) and creates suitable conditions for the discharge of beings. The components of the body help each other to revolve the circle of life. This is the sacrificial tradition, due to which both the sides of the root and conscious class have maintained their well-organized form.

https://doi.org/10.36018/ijyr.v1i2.11
Download full-text PDF
View full-text HTML

References

मलिक, जसवीर सिंह. प्राचीन भारत में पौरोहित्य. क्लासिकल पब्लिशिंग कम्पनी, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 1999:18

शतपथ ब्राह्मण 11/5/4, चौखम्बा संस्कृत सीरिज़, वाराणसी, 1964

गोयल, श्री. प्राचीन भारतीय अभिलेख व संग्रह, खंड 1, प्रथम संस्करण. राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर. 1982:164

Katre SM, Gode OK (editors). A volume of eastern and Indian studies. Karnatak Publishing House, Bombay. 1939:29-30

Archeological survey of India annual report. The director general archeological survey of India, New Delhi. 1911:40

Carnac R, Charles EAW, Idaham O, Aiyangar SK, Bhandarkar DR (Editors). The Indian antiquary. Swati Publications. 1929;58:53

Ancient India. Archaeological Survey of India, Delhi. 1946-1962;21:245

Archeological survey of India annual report. The director general archeological survey of India, New Delhi. 1907:59

गोयल, श्री. प्राचीन भारतीय अभिलेख व संग्रह, खण्ड 1, प्रथम संस्करण. राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर. 1982:424

Epigraphia Indica. The director general archeological survey of India, New Delhi. 1892:269

मजूमदार, र. भारतीय जन का इतिहास (वाकाटक गुप्त एज), फलक 3, 1 मोतीदास बनारसीदास, नई दिल्ली. 1968

उपाध्याय, वा. गुप्त साम्राज्य का इतिहास,खण्ड-1, द्वितीय संस्करण. इंडियन प्रेस (पब्लिकेशन) प्राइवेट लिमिटेड इलाहाबाद. 1957:108

हर्षचरित. चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी. 1972:147

महाजन बी. प्राचीन भारत का इतिहास. एस. चाँद. पब्लिशिंग, नई दिल्ली. 2001:699

सरस्वती द. पूना प्रवचन सात एवं ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका, वेद विषय विचार, वैदिक यन्त्रालय, अजमेर, राजस्थान. 1970

Wheelar TS and Blair PW. J Soc Chem Ind. 1923;75:42-491

Maximov NA. Plant physiology. Mc Grow Hill, Newyork. 1938

भट्ट कु, टीकाकार. मनुस्मृति 3.70. निर्णय सागर प्रेस, बम्बई. 1946

Creative 
Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.

Metrics

Metrics Loading ...